किसने आयुर्वेद की सबसे प्रारंभिक पुस्तक लिखी जो बाल चिकित्सा से संबंधित है:
आयुर्वेदिक पाठ का नाम आम तौर पर लेखक के नाम पर आधारित होता है।जैसे कि चरक संहिता आयुर्वेद में चिकित्सा की सबसे बड़ी पुस्तक में से एक है लेकिन इतिहास के अनुसार जैसा कि हम जानते हैं कि आयुर्वेद सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है।तो, उस समय पुस्तक लेखन की कोई व्यवस्था नहीं थी, वास्तव में गुरु (शिक्षक) अपने छात्रों को मौखिक रूप से आयुर्वेद पढ़ाते थे जिसे श्रुत परम्परा (मौखिक शिक्षा) कहा जाता है। लेकिन जब समय बीतता है तो ज्ञान के दस्तावेजीकरण की आवश्यक्ता महसूस होती है। तभी से पुस्तक लेखन का फैशन शुरू हुआ।

आयुर्वेद के ग्रंथ-
हालाँकि दवाओं के रूप में जड़ी-बूटियों का उपयोग वैदिक काल में ही शुरू हो गया था, लेकिन 3000 साल पहले तक आयुर्वेद पर संहिता नामक विशिष्ट ग्रंथ नहीं लिखे गए थे। इस काल को आयुर्वेद का स्वर्ण काल कहा जा सकता है। बृहत्रयी और लघुत्रयी के नाम से जाने जाने वाले निम्नलिखित ग्रंथ आयुर्वेद चिकित्सकों को अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
अष्टांग आयुर्वेद -
विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल और उपचार विकल्प प्रदान करने के लिए, आयुर्वेद को आठ शाखाओं में विभाजित किया गया था,जिन्हें सामूहिक रूप से अष्टांग आयुर्वेद के रूप में जाना जाता है। ये शाखाएँ आंतरिक चिकित्सा, स्त्री रोग, प्रसूति एवं बाल रोग, मनोरोग, ईएनटी, सर्जरी, विष विज्ञान, जराचिकित्सा और यौन विकारों से संबंधित हैं।
चरक संहिता-
विभिन्न ऐतिहासिक कालों में आचार्य अग्निवेश, चरक और दृदबाला द्वारा लिखित, यह आयुर्वेद की सबसे प्रतिष्ठित संहिता है जो मुख्य रूप से विह्कयाचिकित्सा यानी आंतरिक चिकित्सा से संबंधित है। यहां रोगों के निदान और उपचार के लिए आयुर्वेद के सभी मार्गदर्शक सिद्धांतों का विवरण पाया जा सकता है।
सुश्रुत संहिता-
इस ग्रन्थ में शल्य चिकित्सा के विवरण मिलने के कारण सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक माना जाता है। यह संहिता मुख्यतः शल्य चिकित्सा से संबंधित है। यह त्वचा की परतों, कॉस्मेटिक सर्जरी, ग्राफ्टिंग आदि के वर्णन से पाठकों को आश्चर्यचकित करता है। 184 अध्यायों में आंख, कान, नाक, गले सहित 1000 से अधिक रोगों का वर्णन करते हुए यह चिकित्सा के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक बन गया है।
वाग्भट्ट संहिता-
वाग्भट्ट द्वारा लिखित, यह चरक और सुश्रुत संहिता दोनों का संयोजन है, जिसमें स्वयं लेखक द्वारा मूल्यवान विषयो को शामिल किया गया है, जो इसे सभी चिकित्सकों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक संक्षिप्त ग्रंथ बनाता है जो सभी विषयों का शरांश है।
इस पुस्तक को रोगों की विकृति पर ग्रंथ कहा जा सकता है। सामान्य रूप से और विशिष्ट रोगों के लिए कारकों, संकेतों और लक्षणों तथा रोगों के रोगजनन पर काफी हद तक विचार किया गया है।इसमें रोग की पह्चान और कारण के बारे चर्चा किया गया है।
शारंगधर संहिता-
यह पुस्तक विभिन्न एकल और मिश्रित औषधि निर्माणों और उनकी तैयारी की विधि का वर्णन करती है, जिन्हें पाउडर, काढ़ा, टैबलेट, औषधीय घी और तेल आदि जैसे खुराक रूपों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। विभिन्न रोगों के प्रबंधन में दवाओं के चयन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी पुस्तक है।
भावप्रकाश निघण्टु-
इसे आयुर्वेद की मटेरिया मेडिका कहा जा सकता है जहां एक सौ से अधिक जड़ी-बूटियों का उनके रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव (विशिष्ट क्रिया) के संदर्भ में वर्णन मिल सकता है। यह एकल दवाओं के सिद्धांतों और फार्माकोडायनामिक्स का वर्णन करता है।
सम्बन्धित प्रश्नवली
आयुर्वेद और भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रमुख योगदानकर्ता और चिकित्सक कौन थे?
चरक प्राचीन भारत में आयुर्वेद चिकित्सा के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक थे। उन्हें उनके काम चरक संहिता के लिए जाना जाता है। इसे चरक-संहिता भी कहते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के जनक कौन है?
चरक को आयुर्वेद का जनक या आयुर्वेदिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है।
आयुर्वेद पर आधारित कौन से सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं?
चरक-संहिता