देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी-
"एकादशी का अर्थ" ( ग्यारहवाँ) इस प्रकार ‘एकादशी’ का अर्थ हिन्दू कैलेंडर में हर महीने अमावस्या के दिन से ग्यारहवां दिन और फिर पूर्णिमा से 11वां दिन होता है। इस प्रकार एक महीने में दो ‘एकादशी’ दिन होते हैं। प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी तिथि पड़ती है, परन्तु कभी ये 25 या 26 भी हो सकती है (अधिकमास के कारण )
प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, यह 12 नवंबर,मंगलवार 2024 को मनाया जाएगा। यह दिन, जो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के दौरान आता है, हिंदू कैलेंडर में सबसे शुभ अवसरों में से एक माना जाता है। इस दिन, ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा (दिव्य नींद) से जागते हैं, और अपने दिव्य कर्तव्यों को फिर से शुरू करते हैं।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा-
देवउठनी एकादशी की व्रत कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि सतयुग में राजा बलि, जो असुरों के राजा थे, अपने दान, धर्म और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी भक्ति और शक्ति इतनी बढ़ गई कि देवता भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि की परीक्षा लेने का निश्चय किया।भगवान वामन ब्राह्मण का वेश धारण करके राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे और उनसे दान में केवल तीन पग भूमि मांगी।राजा बलि ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। तब भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारण किया और तीन पगों में पूरी पृथ्वी, आकाश और पाताल को नाप लिया। अपने वचन को निभाते हुए, राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने सिर पर तीसरा पग रखने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया और पाताल लोक का अधिपति बना दिया।
इसके बाद भगवान विष्णु ने चार महीने तक राजा बलि के पास पाताल में विश्राम किया। जब चार महीने की अवधि समाप्त हुई, तो भगवान विष्णु योग निद्रा से जागे और स्वर्ग लोक को लौटे। इस दिन को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाने लगा, और इसे बहुत ही पवित्र व्रत माना जाता है।
इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी की पूजा सामाग्री-
- पूजा के लिए चौकी और भगवान विष्णु की प्रतिमा का होना बेहद जरूरी है।
- गुलाब, अगस्त्य, कदम्ब और कनैर के फूलों को अपनी पूजा की थाली में जरूर रख लें। यह विष्णु भगवान को बेहद प्रिय है।
- देव उठनी एकादशी पर तुलसी के पौधे की पूजा की जाती है। जातक जो भी तुलसी देवी की आज के दिन पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
- विष्णु भगवान की पूजा करने से पहले उनके लिए एक पीला वस्त्र जरूर रखें, क्योंकि उन्हें पीला रंग बेहद प्रिय है।
- इसके अलावा, भगवान विष्णु को अर्पित करने के लिए कुछ सुहाग के सामान जैसे लाल चुनरी, चूड़ी या साड़ी जरूर रख लें।
- साथ ही, देव उठनी एकादशी पर सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु को अर्पित करने के लिए हल्दी, धूप और दीप की व्यवस्था अवश्य कर लें
देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के भोग-
भोग के लिए गन्ना, आंवला, मूली, शकरकंद, बेर, सिंघाड़ा, सीताफल, अमरूद के अलावा, अन्य मौसमी फल जरूर रखें। इसके अलावा, पीले रंग की मिठाई का भोग भी आप विष्णु भगवान को लगा सकते हैं। इससे जगत के पालनहार प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं|Also read:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।।
एकादशी व्रत के लिए विष्णु मंत्र-
विष्णु मंत्र-
ॐ नमो नारायणाय ।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
विष्णु गायत्री महामंत्र-
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि,तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।।
संक्षेप में-
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि साल में 24 एकादशियां होती हैं परन्तु यह एकादशी जो दिवाली के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष में पड़ता है जो काफी शुभ और विशेष दिन मना जाता है इस दिन हम सब भगवान विष्णु की पूजा करते हैं जिसमे चूड़ा, गन्ना, मिठाई, फुल फल आदि चढ़ाते हैं और भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हैं कि वो हमारे परिवार को दुख दरिद्र से मुक्त रखें। और कुछ मान्यताओ के अनुसार अगले दिन बड़े सुबह ही उत्तर प्रदेश और बिहार और देश के विभिन्न हिसों में महिलाएं सूप पर गन्ने से मार मार दरिद्र भगाती है/